ब्लडी डैडी मूवी रिव्यू इन हिंदी | Bloody Daddy Movie Review In Hindi

ब्लडी डैडी मूवी रिव्यू इन हिंदी | Bloody Daddy Movie Review In Hindi
अली अब्बास जफर, एक विशेष रचनात्मकता से युक्त निर्देशक, हिंदी फिल्म जगत में अपनी अद्वितीय पहचान बनाए हुए हैं। वे अपने प्रारंभिक दिनों से ही अलग ही सिनेमा के प्रशंसकों की परिचालना कर रहे हैं।

उनका काम इतना विशिष्ट है कि उधौं से लेना भी नहीं, और माधव का देना भी नहीं। कोई इस सोच के सपने में भी नहीं सोच सकता था कि 'मेरे ब्रदर की दुल्हन' जैसी फिल्म के द्वारा अपना करियर शुरू करने वाले इस निर्देशक को बारह साल बाद 'ब्लडी डैडी' बनाने का सौभाग्य प्राप्त होगा। यहीं पर अली की विशेषता स्थित है।

उनकी कहानी, उनके उक्तियाँ और उनके कलाकारों के साथ उनकी सम्बन्धवत्ता बेमिसाल है। फिल्मों की श्रेणी उनके हाथों में बदलती रहती है। वे 'गुंडे' की तरह काम करते हैं, और वे 'जोगी' भी बना सकते हैं।

वेब सीरीज 'तांडव' में भी उनका हस्तक्षेप होता है, और 'टाइगर जिंदा है' के रूप में उनकी महानता दर्शाई गई! और, इस प्रकार करने में अली हर बार चौंकाहट का सामर्थ्य प्रदर्शित करते हैं। एक फिल्म निर्देशक की सच्चाई इसी में निहित है कि वे हमेशा अपने प्रशंसकों को विस्मयचकित करते हैं और कुछ ऐसा करते हैं जो चर्चा का विषय बन जाता है। अली अब्बास जफर की नई फिल्म 'ब्लडी डैडी' लंबे समय तक चर्चा करने वाली है।

एक्शन से भरपूर है फिल्म

"डैडी" फिल्म अपनी विशेषता से निकलती है। इसे देखने वाले लोगों को प्रमुखतः वो पसंद आएगी, जो हीरो-हीरोइन के बगीचों में नहीं ढलने वाले हों और तोता-मैना की कहानियों में कोई दिलचस्पी नहीं रखते हों। यह फिल्म उन हिंदी भाषी दर्शकों के लिए है, जो कभी-कभी अपनी पसंद की प्यास "द घोस्ट राइडर" या "जॉन विक" सीरीज की फिल्मों से बुझाते हैं। इस फिल्म में शाहिद कपूर ने एक अद्वितीय किरदार निभाया है, जो देसी जॉन विक के आकार-धार वाला है।

वह नारकोटिक्स विभाग में काम करता है, जहां वह ड्रग्स का पकड़ता है और अपने ख्वाबों में उन्हें हजम कर जाने की चाह रखता है। लेकिन इस बार उसके बीच में उसका बेटा आ जाता है और वह जंग लड़ने निकलता है।

उसके अपने विभाग के लोग उसे बार-बार धोखा देते रहते हैं। जबकि, उसका टारगेट है दिल्ली एनसीआर का एक ऐसा ड्रग माफिया किंग, जिसकी जान 50 करोड़ रुपये की कोकीन में अटकी है। और, इस जंग के बीच में कहीं अटका हुआ है एक मासूम बेटा।

थोड़ा फर्जी, थोड़ा कबीर का अंदाज़ 

साल 2011 में रिलीज हुई फ्रेंच फिल्म ‘नुई ब्लॉन्श’ की कहानी पर देश में पहले भी एक फिल्म बन चुकी हैं। इस तमिल फिल्म के मुख्य अभिनेता कमल हासन थे। इस बार फिल्म शाहिद कपूर के कंधों पर आधारित है।

शाहिद कपूर को अली अब्बास जफर ने उनके उसी रूप में पेश किया है जिसमें दर्शकों ने कोरोना काल से ठीक पहले फिल्म ‘कबीर सिंह’ में खूब पसंद किया। बीच में शाहिद ने एक ‘फर्जी’ सीरीज भी की है, लेकिन यहां मामला दोनों के कॉकटेल सरीखा है।

सुमैर के किरदार में शाहिद कपूर फिर से अपने अतरंगी मूड में हैं। सुमैर की पत्नी किसी दूसरे की हो चुकी है, लेकिन उसकी जान उसके बेटे में बसती है। हालांकि, अपनी आदतों से वह बाज नहीं आता। वह हिंदी सिनेमा का आम हीरो नहीं है।

ईमानदारी पर कायम रहना सिर्फ उसकी ही जिम्मेदारी नहीं है, वह सिस्टम को हिलाना चाहता है, लेकिन इसके लिए उसका खुद का स्टाइल है। और, सुमैर के इस स्टाइल से शाहिद कपूर का स्टाइल फिल्म ‘ब्लडी डैडी’ में पूरी तरह मिलता है।

अली अब्बास फिल्म दर फिल्म कर रहे कमाल

अली अब्बास जफऱ ने अपनी नई फिल्म 'ब्लडी डैडी' को विदेशी फिल्म के रूप में एक अद्वितीय विषय का चुनाव किया है। इस खबर के सार्वजनिक होते ही, लोगों की निगाहें सीधी-सीधी इस फिल्म 'ब्लडी डैडी' पर टिक गई हैं।

यह फिल्म सही हिंदी फिल्म के रूप में सिनेमाघरों में प्रदर्शित क्यों नहीं हो रही है, यह तो इसके निर्माता जानें लेकिन वर्तमान में सिनेमाघरों के दर्शकों के मनोवृत्ति में हो रहे बदलाव को देखते हुए, यह फिल्म उन्हें संशोधित करने के लिए बिल्कुल उचित है।

अली अब्बास जफऱ की पिछली फिल्म 'जोगी' भी उनकी कविता के हिसाब से एक उत्कृष्ट फिल्म थी, लेकिन 'ब्लडी डैडी' ने उससे बिल्कुल अलग मायने पाए हैं। अली ने इस फिल्म में अपने कलाकारों का चयन बहुत सावधानीपूर्वक किया है।

पहले 50 मिनट की कहानी इतनी दिलचस्प है कि आपको समय का अहसास ही नहीं होता। इस दो घंटे की फिल्म को आप इस सप्ताहांत के लिए पूर्णतः उपयुक्त मान सकते हैं। अली के सिनेमाघर में सामाजिक सत्यापन की एक छोटी सी टुकड़ा भी इस फिल्म में मौजूद है।

फिल्म में दिखी रोनित तथा राजीव की रंगबाजी

फिल्म ‘ब्लडी डैडी’ नहीं सिर्फ शाहिद कपूर के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लोगों के दिलों में जगह बना ली है। इस फिल्म की मूल कहानी आपको एक रात और एक लोकेशन पर ले जाती है, जहां शुरुआती दृश्यों के बाद चुनौतियों भरी कहानी विकसित होती है।

एक रात की कहानी को कहना किसी भी फिल्म निर्माता के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती होती है, लेकिन इसमें अली ने सम्मान सहित अंकों को प्राप्त किया है और इसके चुने हुए कलाकारों ने उन्हें बहुत सहायता दी है।

वहां पर संजय कपूर भले ही 'द नाइट मैनजेर' के अनिल कपूर की कॉपी की तरह लग रहे हों, लेकिन यह फिल्म उनसे अलग है। रोनित रॉय इस फिल्म के दूसरे टेंट पोल हैं और उनकी साथी टीम के सभी कलाकारों की प्रतिभा फिल्म में पूरी तरह से उजागर होती है।

राजीव खंडेलवाल को इस फिल्म में अरसे बाद परदे पर देखना भी बहुत रोमांचक है, विशेष रूप से जब वे स्याह किरदार में नजर आते हैं, जो इस फिल्म को नया रंग देता है। डायना पेंटी भी बहुत लंबे समय बाद परदे पर नजर आती है और उनके किरदार के सामने आती चुनौतियां उनके अभिनय कौशल को बेहतर ढंग से प्रदर्शित करती हैं।

मूवी में सिनेमैटोग्राफी और संपादन की जुगलबंदी 

स्टीवन बर्नाड का संपादन और मारसिन लास्काविएक की सिनेमैटोग्राफी फिल्म ‘ब्लडी डैडी’ के अद्वितीय मस्तूल हैं। और, इनकी अद्वितीयता और उनकी तकनीकी गुणवत्ता के कारण यह फिल्म दिल्ली एनसीआर को भी लॉस वेगास के समान बना देती है।

आमतौर पर, ऐसी कहानियां मुंबई जैसे शहरों की पृष्ठभूमि में ही सोची जाती हैं, लेकिन सियासी माहौल को दरकिनार कर, इस इलाके को एक नए रंग में पेश करना अली अब्बास जफर की अनोखी सोच का परिणाम है।

गाने के बीच ढपली पीटकर ‘गो कोरोना गो’ का स्वांग रचना बहुत कुछ कह जाता है। क्लाइमेक्स के बीच में बादशाह का गाना भी सही ढंग से प्रस्तुत किया गया है। हाँ, इस दौरान एक्शन दृश्यों के सेट बार बार ‘जॉन विक 4’ की याद दिलाते रहते हैं। एक्शन फिल्मों के शौकीनों को यह फिल्म बहुत पसंद आएगी। हाँ, फिल्म के ये एक्शन दृश्य थोड़े वीभत्स हैं, इसलिए फिल्म देखते समय थोड़ी सावधानी आवश्यक है।

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